ग़ज़ल

——– ग़ज़ल ———–

सबब कुछ भी नहीं था बात बिगड़े

सियासी खेल में हालात बिगड़े

तबीयत कैस के जेसी थी मेरी

मेरे सब यार मेरे साथ बिगड़े

हमारे ख़ैर ख़्वाहों में हमीं थे

हमारे घर के जब हालात बिगड़े

अंधेरी रात कोशिश में लगी है

चरागों से हवा की बात बिगड़े

चलो अब इश्क़ में हम जान दे दें

किसी से क्यों हमारी बात बिगड़े

———- राज़िक़ अंसारी ———-

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